असमंजस





आंसुओं से कुछ चुराकर,

ज़ख्म से नज़रें बचाकर,

जेब में खुशियां लिए हूं

दर्द को समझा बुझा कर।


धूप लो आंगन में आई,

लो परिन्दे चहचहाए,


सोचता अच्छा हूं मैं भी,

अपने माज़ी को भुला कर।


देख कर दुनिया को सारी

अनदिखा रह जाएगा जो,

मैं वो अफ़साना कहूंगा,

अपनी नज़रो से बचा कर।


आखिरी लम्हों में सारे

दोस्त दामन छोड़ देंगे

मधुर तेरी ज़िंदगी भी,

जाएगी नज़रें झुका कर।

Comments

  1. सुंदर रचना के लिए आभार

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  2. कहा हो भाई बहुत दिन हो गये कुछ अता पता ही नही है

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  3. ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
    इस ब्लॉग पर आने से हिंदुत्व का विरोध करने वाले कट्टर मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष { कायर} हिन्दू भी परहेज करे.
    समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    देशभक्त हिन्दू ब्लोगरो का पहला साझा मंच - हल्ला बोल
    हल्ला बोल के नियम व् शर्तें

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