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Showing posts from 2010

असमंजस

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आंसुओं से कुछ चुराकर, ज़ख्म से नज़रें बचाकर, जेब में खुशियां लिए हूं दर्द को समझा बुझा कर। धूप लो आंगन में आई, लो परिन्दे चहचहाए, सोचता अच्छा हूं मैं भी, अपने माज़ी को भुला कर। देख कर दुनिया को सारी अनदिखा रह जाएगा जो, मैं वो अफ़साना कहूंगा, अपनी नज़रो से बचा कर। आखिरी लम्हों में सारे दोस्त दामन छोड़ देंगे मधुर तेरी ज़िंदगी भी, जाएगी नज़रें झुका कर।

प्रेम

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आपको सोच के बस सोचता रहता है दिल, आपकी बात पे रुक रुक के धड़कता है दिल, बात शबनम की है छूते बिगड़ ना जाए, आपको देख कर बस देखता रहता है दिल । 

दर्द

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दर्द से गुफ्तगूं करने बैठा, मैं ज़हर आग का पीने बैठा। आज बादल भी फूटकर रोए, दर्द की ख़ाक पे पहरा बैठा। आसुओं अपनी हिफाज़त कर लो, मैं हूं माज़ी के गांव में बैठा। आज की रात रतजगा होगा, एक जुगनू हथेली पर बैठा।

साझा बातें

प्रिय मित्रों एक अरसे बाद दोबारा अपने पी सी को छू रहा हूं..सो पहला काम ये कि आपसे मुखातिब हो लिया जाए, बीमार था और कायदे से बीमार था..लिहाजा़ आप सभी से दूर रहा, लेकिन आप सभी की दुआओं ने मुझे स्वस्थ किया और आज में मैं फिर आपके साथ हूं, मेरी रचनाओं से अपना स्नेह बनाए रखिएगा, यही गुजारिश है आपका मधुरेंद्र मोहन

प्रतीक्षा

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तुम मुझे मुड़ कर कहो तो एक दिन, पास आकर के बता दो एक दिन, मैं तुम्हारी आस में ठहरा हुआ हूं, झील में पत्थर तो फेंको एक दिन। मैं ना जानूं मैं ना समझूं क्या करु मैं, नैन से नैनों की भाषा क्या पढ़ूं मैं, मैं तुम्हारे हृदय की क्या थाह लूंगा, मैं तो दीवाना हूं तुमको चाह लूंगा, किन्तु ना इतने बनो अनजान तुम, प्रेम को आकाश दे दो एक दिन। एक गाथा प्रेम की मैं लिख रहा हूं, किन्तु अभिव्यक्ति में सकुचा दिख रहा हूं, पर मेरी हर कल्पना में सिर्फ तुम हो, ओस हूं बस धूप में मैं बिक रहा हूं। तुम मुझे इक बार होठों से लगा कर, नेह को अभिमान दे दो एक दिन। पुष्प सा सुंदर नहीं हूं जान लो तुम, मैं सुगंधित भी नहीं हूं मान लो तुम, प्रेम में मुझ सा सहज कोई नहीं है, जानना हो इस जगत को छान लो तुम। प्रेम का परिमाण तुमको क्या बताऊं, हृदय के पथ पर चलो तो एक दिन।

तुम्हारी कल्पना में

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इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम, आंख के सागर में ना हो जाऊं मैं गुम । कल्पना है या मेरी छोटी सी आशा, हृदय पत्रों पर उभरती प्रेम भाषा, प्रेयसि इस बार कुछ खुल करके बोलो, प्रेम कोंपल को ना घेरे अब निराशा। हृदय के तारों के मेरे सुर सभी तुम, इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम। नेह को स्पर्श की होती है चाहत , हृदय स्पंदन भी लगती तेरी आहट, रुठ कर कब से गई है मेरी निद्रा, सोचता हूं स्वप्न ना हो जाएं आहत। सोचता तुमको मै जब हो जाता गुमसुम, इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम।

प्रिय के नाम

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देखो प्रिय तुम्हारे आंसू , मेरी आंखों से झरते हैं । ये कैसा पावन परिचय है, हृदय-हृदय से जब मिलते हैं ये उन्माद नहीं है कोई, प्रेम सुधा का प्रखर चरम है , यह मेरी अनुरक्ति भी नहीं , नयनों का ये नहीं भरम है। तुम मेरे आंगन तो आओ, स्नेह दीप अब भी जलते हैं। देखो प्रिय तुम्हारे आंसू... तुमको पाकर जग पाया तो , आकुलता अब शेष नहीं है, नयन बंद कर तुमको देखा, स्वप्नों का कोई देश नहीं है। तुम मेरे दृग में आए हो हृदय पुष्प मेरे खिलते हैं। देखो प्रिय तुम्हारे आंसू... ऐसा नहीं कि तुमसा कोई , सकल विश्व में कोई नहीं है, किन्तु मेरे एकांत का यौवन , आंसू का सुर और नहीं है। तुम पीड़ा में प्रेम उगाओ, मेरे कंठ गीत फबते हैं । देखो प्रिय तुम्हारे आंसू.. मेरी आंखों से झरते हैं

मित्र, जो चला गया

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आज सुबह सूर्य ने फिर आंख खोली, और भर दी रौशनी से जग की झोली, किन्तु कुछ जगहों पर पसरा है अंधेरा, दीप के शव पर ना सूरज खेल होली । हां बहुत उन्मुक्त से दिखते हो दिनकर, मृत्यु पर दीपक के तुम रोओ भी क्यूं कर, भोर में शव साधना अच्छी नहीं है, क्षोभ ऐसा कि हुए जाते हो जर्जर । किन्तु कुछ जगहों पर पसरा है अंधेरा, दीप के शव पर ना सूरज खेल होली । सूर्य तुम भी खुश नहीं हो जो हुआ है, आंख की कोरों को लाली ने छुआ है, सच कहो षडयंत्र में शामिल नहीं थे, या कि बुझते दीप पर अब दुख हुआ है। किन्तु कुछ जगहों पर पसरा है अंधेरा, दीप के शव पर ना सूरज खेल होली ।

मेरी मां के लिए

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जब भी थक कर के,मैं दफ़्तर से घर को लौटा हूं, और यूं सोया हूं कि मुझको कुछ पता ही नहीं फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां, मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको । जब भी ऐसा लगा मेरे हाथ में अब कुछ भी नहीं याद आता है वो दस पैसे का सिक्का मुझको, जिससे लेता था मैं चूरन की वो मीठी गोली पेट भर जाता है महसूस हुआ है मुझको । फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां, मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको । हर तरफ भीड़ है, आवाज़ है और दुकानें सारी दुनिया है और फिर मैं इतना तन्हा, मैंने बेबस सी निगाहों से आसमां को तका तेरा आंचल है नम महसूस हुआ है मुझको । फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां, मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको । जब भी आंखों में तेरी शक्ल सी उभरी हो मेरे मेरा गुस्सा कहीं काफूर सा हो जाता है हर एक शख़्स के किरदार में मिलती हो मुझे तुम हवाओं में भी महसूस हुआ है मुझको । फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां, मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।

प्रथम मिलन

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वह अंतिम अनुभूति हृदय की, सांस थमी सी लगी समय की, वह स्पर्श व्याख्या ढूंढे, उसको ढूंढे गंध मलय की ।

अभिलाषा

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मौन ही जब सार्थक स्वीकृति बने, और जीवन मृत्यु की अनुकृति बने, तब विभा ना भेजना कुछ व्यर्थ तुम चाहता हूं प्राण की आहुति बने ।

तुम मिले

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बेसबब था सफर बेसबब ज़िंदगी बेसबब हर खुशी बेसबब हर हंसी आज फिर भी ये दिल इतना इतरा रहा बात थोड़ी सी है मिल गई जिंदगी तुम मिले और मैं ख्वाब बुनने लगा बेसबब ख़ार रस्तों के चुनने लगा तुम मिले और ख्वाबों में रंग भर गए और मैं बात सबकी ही सुनने लगा क्या यही प्यार है तू बता जिंदगी। तू ना माने ना माने तो क्या बात है आज हर ख्वाब ही एक परवाज़ है ऐ खुदा अप्सराएं तो होंगी बहुत पर मेरा यार औरों से कुछ खास है क्या यही प्यार है तू बता ज़िंदगी ।

सिर्फ तुम

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मैं तुम्हें चाहता बहुत हूं मगर , और मैं कह ना सका कुछ तुमसे तुम ही समझो तो बात अच्छी है मेरे चेहरे पर नूर है तुमसे मेरे अंतर की सारी सारी व्यथा पलकों पर आ नहीं सकी फिर भी तुमको देखा तो देखता ही रहा दर्द के साथ ही दवा तुमसे मैं तुम्हें चाहता बहुत हूं मगर , और मैं कह ना सका कुछ तुमसे । लोग कहते हैं कदम ठिठके हैं लोग नांदां हैं लोग क्या समझें मैंने जिस दिन नहीं देखा तुमको सांस दुश्वार ख्वाब थी हमसे मैं तुम्हें चाहता बहुत हूं मगर , और मैं कह ना सका कुछ तुमसे । मैंने देखी तेरी मासूम हंसी होंठ पर कोई लहर उठती सी मेरे सीने में कोई ख्वाब जगा एक अलसाई किरण है तुमसे मैं तुम्हें चाहता बहुत हूं मगर , और मैं कह ना सका कुछ तुमसे । आज की बात चलो हो जाए चांद बादल में कहीं खो जाए मैं तुम्हें जी लूं पूर्णिमा की तरह सारी ही चांदनी रहे तुमसे मैं तुम्हें चाहता बहुत हूं मगर , और मैं कह ना सका कुछ तुमसे । तुमको चाहा तो टूटकर चाहा मैं निहां हो गया हूं ख्वाबों में मेरी आंखो में टिमटिमाती खुशी हर खुशी का सुरूर है तुमसे