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Showing posts from February, 2011

सज़ा

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तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ, प्रिय हृदय के भेद खोलो ना छिपाओ। तुम भले ही झूठ को सच बोलते हो किन्तु भावों ने बता दी बात सारी, प्रेम नयनों में छिपी इक रोशनी है बुझ नहीं सकती है तुम कितना बुझाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ... मानता हूं पग नहीं मग पर सधे हैं औऱ अंतर्द्वन्द भी मिटते नहीं हैं, मन की सीमा से परे कुछ स्वप्न सुंदर टिमटिमाते से दिए हैं मत बुझाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ... भोर की पहली किरण ने ये जताया कब विकल्पों से भला जीवन चला है, चेतना के गर्भ से उगता है अंकुर प्रेम समझो, प्रेम भाषा मत मिटाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ...

अधूरा मन

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आज भी सोचता हूं मैं तुमको, सोचता हूं तुम्हारी बातों को , अब तो बातें ही सोचनी होगी, काश मैं रोक ही सकता तुमको। ये तो फाहे हैं सिर्फ यादों के, इनसे दिल को सुकून क्या मिलता, तुम कहीं भी रहो मुनासिब है, धड़कनों में बसा लिया तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. यूं तो दुश्वारियों में हैं खुशियां, हर खुशी का लिबास है सादा, ज़िंदगी काश कैनवस होती, रंग में ढूंढ़ता रहता तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. जो दुआ थी मेरी खुशी के लिए, वो दुआ अब कुबूल है समझो, कितना ही दर्द छिपा हो दिल में, मुस्कराता ही मिलूंगा तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. आख़िरी में यही ग़ुज़ारिश है, जब भी आना तो मेरे घर आना, मां मेरी ख़्वाहिशों में रंग भरना, मिलना बेटी की शक्ल में मुझको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको..