अधूरा मन
आज भी सोचता हूं मैं तुमको,
सोचता हूं तुम्हारी बातों को ,
अब तो बातें ही सोचनी होगी,
काश मैं रोक ही सकता तुमको।
ये तो फाहे हैं सिर्फ यादों के,
इनसे दिल को सुकून क्या मिलता,
तुम कहीं भी रहो मुनासिब है,
धड़कनों में बसा लिया तुमको।
आज भी सोचता हूं मैं तुमको..
यूं तो दुश्वारियों में हैं खुशियां,
हर खुशी का लिबास है सादा,
ज़िंदगी काश कैनवस होती,
रंग में ढूंढ़ता रहता तुमको।
आज भी सोचता हूं मैं तुमको..
जो दुआ थी मेरी खुशी के लिए,
वो दुआ अब कुबूल है समझो,
कितना ही दर्द छिपा हो दिल में,
मुस्कराता ही मिलूंगा तुमको।
आज भी सोचता हूं मैं तुमको..
आख़िरी में यही ग़ुज़ारिश है,
जब भी आना तो मेरे घर आना,
मां मेरी ख़्वाहिशों में रंग भरना,
मिलना बेटी की शक्ल में मुझको।
आज भी सोचता हूं मैं तुमको..
bahut badhiyaa kavita hai
ReplyDeletepyaar har haal mai pyar hee hai har roop mai
bahut khoob...
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