मोबाइल
अब भी करता हूं घर पे फोन मगर
पर वो आवाज़ अब नहीं आती
लगता है कितने ज़माने बीते
होता था रोज़ फोन पर अक्सर
मेरे कुछ बोलने से पहले ही
कहती थीं खुश रहो सदा बेटा
आज आफिस से देर लौटे हो
तुम को तो भूख लगी होगी बहुत
जाओ पहले ज़रा सा कुछ खा लो
फिर थोड़ी देर में बातें करना
सोचता हूं जो मां की बातों को
आंख में तैर सी जाती है नमी
आज मैं फिर से देर लौटा हूं
और हाथों में लेके बैठा हूं
अपना तन्हा सा एक मोबाइल
मां तेरा फोन क्यों नहीं आता..?
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