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आधी ख़्वाहिश

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ये कैसा सिलसिला है,ख़त्म जो नहीं होता, यूं दिल से ख़्वाब का लंबा सफ़र नहीं होता । तमाम दिन, तमाम रात और ये बेचैनी, क्यूं तेरी याद में आंसू का पर नहीं होता । अजीब शख़्स हूं, आंखों में सिर्फ सन्नाटा, ना कोई शोर, कोई चाप अब नहीं होता । शहर में भीड़, भीड़ में शिकस्त से चेहरे, ये जिस्म-ओ-रुह में एहसास क्यों नहीं होता। ये प्यास, प्यास उम्र भर की हो गई शायद, अब तो दरिया का भी कोई असर नहीं होता । तेरा ख़्याल है, दिन-रात घेरे रहता है, मैं अपने घर में भी तन्हा कभी नहीं होता।