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Showing posts from 2011

अरमान

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कभी एहसास के दामन को आंसू से भिगो देना कभी हसरत की मिट्टी में सुनहरे ख्वाब बो देना। मैं चाहत की चमकती राह पर सदियों से तन्हा हूं कभी फुरसत में मेरे ख्वाब को इक आसमां देना। समंदर पूछता रहता है मुझसे तेरी बातों को ये लहरें छू के मुझको पूछती हैं तेरी यादों को मैं क्या कह दूं चरागों की तरह ख़ामोश बैठा हूं मैं कैसे खोल दूं दिल की मोहब्बत के लिफाफों को समंदर के किनारे पर बिछा मैं रेत का बिस्तर कभी जब दिल करे इस पर कोई सिलवट सजा देना। कभी एहसास के दामन को आंसू से भिगो देना कभी हसरत की मिट्टी में सुनहरे ख्वाब बो देना।     मुझे तो चांद या तारे कभी अच्छे नहीं लगते मुझे ये झिलमिलाते रात में जुगनू नहीं जंचते मैं क्या मांगूं ख़ुदा से सोचता रहता हूं रातों को मेरे ख़्वाबों के दामन में तेरे ही अक्स हैं सजते हूं मैं इक फूल जो अपने ही कांटों से हुआ घायल फकत शबनम की ख्वाहिश है, अगर जो हो सके देना।   कभी एहसास के दामन को आंसू से भिगो देना कभी हसरत की मिट्टी में सुनहरे ख्वाब बो देना। सुलगती

आधी ख़्वाहिश

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ये कैसा सिलसिला है,ख़त्म जो नहीं होता, यूं दिल से ख़्वाब का लंबा सफ़र नहीं होता । तमाम दिन, तमाम रात और ये बेचैनी, क्यूं तेरी याद में आंसू का पर नहीं होता । अजीब शख़्स हूं, आंखों में सिर्फ सन्नाटा, ना कोई शोर, कोई चाप अब नहीं होता । शहर में भीड़, भीड़ में शिकस्त से चेहरे, ये जिस्म-ओ-रुह में एहसास क्यों नहीं होता। ये प्यास, प्यास उम्र भर की हो गई शायद, अब तो दरिया का भी कोई असर नहीं होता । तेरा ख़्याल है, दिन-रात घेरे रहता है, मैं अपने घर में भी तन्हा कभी नहीं होता।

मोबाइल

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अब भी करता हूं घर पे फोन मगर पर वो आवाज़ अब नहीं आती लगता है कितने ज़माने बीते होता था रोज़ फोन पर अक्सर मेरे कुछ बोलने से पहले ही कहती थीं खुश रहो सदा बेटा आज आफिस से देर लौटे हो तुम को तो भूख लगी होगी बहुत जाओ पहले ज़रा सा कुछ खा लो फिर थोड़ी देर में बातें करना सोचता हूं जो मां की बातों को आंख में तैर सी जाती है नमी आज मैं फिर से देर लौटा हूं और हाथों में लेके बैठा हूं  अपना तन्हा सा एक मोबाइल मां तेरा फोन क्यों नहीं आता..?

प्रेम जो सच्चा था

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पल दो पल रंग करके तुमने, प्रिय कैसा अभिसार किया । सहसा विमुख हो गई फिर तुम, ऐसा विस्मित प्यार किया । सहज प्रेम की सहज विवशता, सहज निमंत्रण की परवशता, तपते अधरों का रस पीकर, मधुकर जीवन वार दिया । आलिंगन को तृप्ति ना मिली, तृप्ति को अभिव्यक्ति ना मिली, क्षण भंगुर से इस जीवन में , ये कैसा अतिभार लिया । असहज और चकित सा यौवन, परिचित किंतु अपरिचित सा मन, नर्म गुलाबी से कपोल पर, अधरों ने अतिचार किया । विस्मय की यह कैसी सज्जा, प्रेम पथिक से कैसी लज्जा, मैं से तुम तक,तुम से हम तक प्रेम उद्यान विहार किया ।

दुआ

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पिछली होली में तुमने दी थी दुआएं मुझको, अब की होली में भी दी होंगी, मुझे मालूम है, कितनी ही दूर हो पर पास हो मेरे फिर भी, मां ये एहसास ही, यकीं है, मुझे मालूम है ।

साये

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जब मैं तन्हाईयों में होता हूं साथ के खुद भी मैं नहीं होता फिर भी दो साये मेरे साथ बने रहते हैं जानता हूं मैं उनके चेहरों को वो भी ये जानते हैं  छिप नहीं सकते मुझसे मैं समझता हूं उनकी बेचैनी वो परेशां है मेरी हालात पर उनकी हसरत है मेरे होठों पर मुस्कराहट हमेशा रौशन हो मैं सलामत हूं जो हालात की इस आंधी में उन फरिश्तों की दुआ है शायद ये वो साये हैं जिनसे ज़िंदगी मिली है मुझे मेरे वालिद औ मेरी मां के सर्द साये ने अक्सर मुश्किल से बचाया है मुझे लगता है आज भी वो ज़िंदा हैं ज़िंदा हैं.. जब तलक मैं हूं ज़िंदा..

सज़ा

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तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ, प्रिय हृदय के भेद खोलो ना छिपाओ। तुम भले ही झूठ को सच बोलते हो किन्तु भावों ने बता दी बात सारी, प्रेम नयनों में छिपी इक रोशनी है बुझ नहीं सकती है तुम कितना बुझाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ... मानता हूं पग नहीं मग पर सधे हैं औऱ अंतर्द्वन्द भी मिटते नहीं हैं, मन की सीमा से परे कुछ स्वप्न सुंदर टिमटिमाते से दिए हैं मत बुझाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ... भोर की पहली किरण ने ये जताया कब विकल्पों से भला जीवन चला है, चेतना के गर्भ से उगता है अंकुर प्रेम समझो, प्रेम भाषा मत मिटाओ। तुमने खुद को दी सज़ा क्यूं ये बताओ...

अधूरा मन

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आज भी सोचता हूं मैं तुमको, सोचता हूं तुम्हारी बातों को , अब तो बातें ही सोचनी होगी, काश मैं रोक ही सकता तुमको। ये तो फाहे हैं सिर्फ यादों के, इनसे दिल को सुकून क्या मिलता, तुम कहीं भी रहो मुनासिब है, धड़कनों में बसा लिया तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. यूं तो दुश्वारियों में हैं खुशियां, हर खुशी का लिबास है सादा, ज़िंदगी काश कैनवस होती, रंग में ढूंढ़ता रहता तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. जो दुआ थी मेरी खुशी के लिए, वो दुआ अब कुबूल है समझो, कितना ही दर्द छिपा हो दिल में, मुस्कराता ही मिलूंगा तुमको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको.. आख़िरी में यही ग़ुज़ारिश है, जब भी आना तो मेरे घर आना, मां मेरी ख़्वाहिशों में रंग भरना, मिलना बेटी की शक्ल में मुझको। आज भी सोचता हूं मैं तुमको..