Posts

Showing posts from June, 2012

एक गुल्लक ज़िंदगी...

Image
आज फिर एक दिन का खर्चा है आज फिर एक नोट कम होगा। ज़िंदगी की सुनहरी गुल्लक से खाली से दिन का बोझ कम होगा। ऐसे खर्चे है रोज दिन का नोट हाथों से बस फिसल गया जैसे। आदतन खूब संभाला उसको, वक्त का नोट उड़ गया जैसे। फिर से गुल्लक को लेके हाथों उम्र का वजन तौलना होगा। नोट तो रोज़ खर्च होता है बदले में मिल गए मुझे चिल्लर शाम को घर पे अपनी गुल्लक में डाल देता हूं यादों के चिल्लर और मैं देखता हूं गुल्लक को आज तो कुछ वजन बढ़ा होगा। ऐसा ही एक वक्त आएगा नोट सारे ही खर्च होंगे जब, सिर्फ यादों के ढेर से सिक्के मेरी गुल्लक में ही रहेंगे तब खूब खनकाउंगा मैं वो गुल्लक उससे सांसों का बोझ कम होगा। सारे नोटों के खर्च होने पर सिक्को से भर चुकी हुई गुल्लक। वक्त की बेरहम सी ठोकर पर फूट जाएगी सुनहरी गुल्लक। सारे चिल्लर बिखर से जाएंगे दोस्तों को भी तजुर्बा होगा। फूटते ही सुनहरी गुल्लक के लोग लूटेगें उसकी कुछ बातें, कुछ की आंखों से अश्क छलकेंगे कुछ के दिल को मिलेगी सौगातें। एक गुल्लक मिलेगी मिट्टी में सबके हाथों में कुछ