एक गुल्लक ज़िंदगी...



आज फिर एक दिन का खर्चा है
आज फिर एक नोट कम होगा।
ज़िंदगी की सुनहरी गुल्लक से
खाली से दिन का बोझ कम होगा।

ऐसे खर्चे है रोज दिन का नोट
हाथों से बस फिसल गया जैसे।
आदतन खूब संभाला उसको,
वक्त का नोट उड़ गया जैसे।

फिर से गुल्लक को लेके हाथों
उम्र का वजन तौलना होगा।

नोट तो रोज़ खर्च होता है
बदले में मिल गए मुझे चिल्लर
शाम को घर पे अपनी गुल्लक में
डाल देता हूं यादों के चिल्लर

और मैं देखता हूं गुल्लक को
आज तो कुछ वजन बढ़ा होगा।

ऐसा ही एक वक्त आएगा
नोट सारे ही खर्च होंगे जब,
सिर्फ यादों के ढेर से सिक्के
मेरी गुल्लक में ही रहेंगे तब

खूब खनकाउंगा मैं वो गुल्लक
उससे सांसों का बोझ कम होगा।

सारे नोटों के खर्च होने पर
सिक्को से भर चुकी हुई गुल्लक।
वक्त की बेरहम सी ठोकर पर
फूट जाएगी सुनहरी गुल्लक।

सारे चिल्लर बिखर से जाएंगे
दोस्तों को भी तजुर्बा होगा।

फूटते ही सुनहरी गुल्लक के
लोग लूटेगें उसकी कुछ बातें,
कुछ की आंखों से अश्क छलकेंगे
कुछ के दिल को मिलेगी सौगातें।


एक गुल्लक मिलेगी मिट्टी में
सबके हाथों में कुछ ना कुछ होगा।

Comments

  1. bahut hee behtarin tareeke se aapne jindagi ka bishlesha kiya hai..wakai behtarin

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  2. वाह,

    बेहद खूबसूरत ख़याल...
    यूँही कुछ हमने भी लिखा था...बनायी थी एक गुल्लक और उसमे डाले थे खुशियों वाले दिन...और फिर किसी उदास दिन को किया था हिसाब खुशियों का :-)
    अनु

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    1. शुक्रिया अनु जी..आभार...

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  3. वाह,

    बेहद खूबसूरत ख़याल...
    यूँही कुछ हमने भी लिखा था...बनायी थी एक गुल्लक और उसमे डाले थे खुशियों वाले दिन...और फिर किसी उदास दिन को किया था हिसाब खुशियों का :-)
    अनु

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  4. बेहतरीन भावभिव्यक्ति ....

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    1. पल्लवी जी बस जो दिल में ख्याल आता है उसे जितनी जल्दी हो सके पन्ने पर उतार देता हूं..आपको अच्छी लगी आभार आपका

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  5. एक गुल्लक मिलेगी मिट्टी में
    सबके हाथों में कुछ ना कुछ होगा। ... यकी़नन
    बहुत ही उम्‍दा प्रस्‍तुति

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    1. सदा जी मेरा हौसला बढ़ाने के लिए आप का हृदय से आभार..शुक्रिया

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  6. मंगलवार 21/05/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद !!

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    1. शुक्रिया विभा जी...आभार..आपका...
      धन्यवाद

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  7. सबके हित के लिए संरक्षित गुल्लक में सबको कुछ न कुछ मिलता ही है ....बहुत प्यारी रचना ...

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    1. शुक्रिया कविता जी...ज़िंदगी माटी की गुल्लक ही है..जो एक दिन उसी में मिल जानी है...पुन: आभार धन्यवाद

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