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मोहब्बत से आगे..कुछ औऱ..

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मोहब्बत बात करती है मेरी तन्हाईयों में, हमारे साथ रहती हैं कि हर रुसवाइयों में। बहुत से ख्वाब उनींदें बहुत अलसाई सी रातें, बहुत से रतजगे थे और अधूरी सी रही बातें, थे कुछ यूं अनकहे पैगाम उन अंगड़ाइयों में। बहुत बिगड़ा रहा मौसम बहुत सी आंधियां आई, बहुत से रास्ते भटके कि जब भी हिचकियां आई, अभी भी हसरतें शामिल उन्हीं परछाइयों में। बहुत थी बेकरारी भी बहुत से दिल में अफसाने, बहुत थी बेखुदी भी छलके थे आंखों के पैमाने, हज़ारों जुगनुओं ने भी छला बर्बादियों में।

इक सवाल..

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वो इक सवाल जो सदियों से कैद सीने में वो इक जवाब जो लम्हों के उस सफीने में बहुत दिनों से इक ख्याल बहुत गुमसुम है वो बेमज़ा सा सुलगता है मेरे सीने में। ना आरजू ना कोई दर्द स्याह रातों में ना हसरतें ना जुस्तजू बची हैं आखों में फकत चुनिंदा ख्वाब के वो नुकीले टुकड़े लहूलुहान कर रहे हैं उन्हीं सांसों में मैं बेइरादा,बेसबब सा उसी साहिल पर, वो ढूंढता हूं जो खो आया था सफीने में। वही मिजाज़ वही दर्द वही अफसाने वही ख्याल जो हसरत से मिला अनजाने जो जिक्र उसके तग़ाफुल सामने आया उलझते ही गए रिश्ते थे हमको सुलझाने मैं बेकरार मुसाफिर सा उन्हीं रिश्तों में तलाशता हूं सबब जो नहीं है जीने में।