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मोहब्बत से आगे..कुछ औऱ..

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मोहब्बत बात करती है मेरी तन्हाईयों में, हमारे साथ रहती हैं कि हर रुसवाइयों में। बहुत से ख्वाब उनींदें बहुत अलसाई सी रातें, बहुत से रतजगे थे और अधूरी सी रही बातें, थे कुछ यूं अनकहे पैगाम उन अंगड़ाइयों में। बहुत बिगड़ा रहा मौसम बहुत सी आंधियां आई, बहुत से रास्ते भटके कि जब भी हिचकियां आई, अभी भी हसरतें शामिल उन्हीं परछाइयों में। बहुत थी बेकरारी भी बहुत से दिल में अफसाने, बहुत थी बेखुदी भी छलके थे आंखों के पैमाने, हज़ारों जुगनुओं ने भी छला बर्बादियों में।

इक सवाल..

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वो इक सवाल जो सदियों से कैद सीने में वो इक जवाब जो लम्हों के उस सफीने में बहुत दिनों से इक ख्याल बहुत गुमसुम है वो बेमज़ा सा सुलगता है मेरे सीने में। ना आरजू ना कोई दर्द स्याह रातों में ना हसरतें ना जुस्तजू बची हैं आखों में फकत चुनिंदा ख्वाब के वो नुकीले टुकड़े लहूलुहान कर रहे हैं उन्हीं सांसों में मैं बेइरादा,बेसबब सा उसी साहिल पर, वो ढूंढता हूं जो खो आया था सफीने में। वही मिजाज़ वही दर्द वही अफसाने वही ख्याल जो हसरत से मिला अनजाने जो जिक्र उसके तग़ाफुल सामने आया उलझते ही गए रिश्ते थे हमको सुलझाने मैं बेकरार मुसाफिर सा उन्हीं रिश्तों में तलाशता हूं सबब जो नहीं है जीने में।

एक गुल्लक ज़िंदगी...

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आज फिर एक दिन का खर्चा है आज फिर एक नोट कम होगा। ज़िंदगी की सुनहरी गुल्लक से खाली से दिन का बोझ कम होगा। ऐसे खर्चे है रोज दिन का नोट हाथों से बस फिसल गया जैसे। आदतन खूब संभाला उसको, वक्त का नोट उड़ गया जैसे। फिर से गुल्लक को लेके हाथों उम्र का वजन तौलना होगा। नोट तो रोज़ खर्च होता है बदले में मिल गए मुझे चिल्लर शाम को घर पे अपनी गुल्लक में डाल देता हूं यादों के चिल्लर और मैं देखता हूं गुल्लक को आज तो कुछ वजन बढ़ा होगा। ऐसा ही एक वक्त आएगा नोट सारे ही खर्च होंगे जब, सिर्फ यादों के ढेर से सिक्के मेरी गुल्लक में ही रहेंगे तब खूब खनकाउंगा मैं वो गुल्लक उससे सांसों का बोझ कम होगा। सारे नोटों के खर्च होने पर सिक्को से भर चुकी हुई गुल्लक। वक्त की बेरहम सी ठोकर पर फूट जाएगी सुनहरी गुल्लक। सारे चिल्लर बिखर से जाएंगे दोस्तों को भी तजुर्बा होगा। फूटते ही सुनहरी गुल्लक के लोग लूटेगें उसकी कुछ बातें, कुछ की आंखों से अश्क छलकेंगे कुछ के दिल को मिलेगी सौगातें। एक गुल्लक मिलेगी मिट्टी में सबके हाथों में कुछ
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ज़िंदगी सुबह सुबह अलसाई किरणें जब मेरे घर में आती हैं, सुबह सुबह कुछ सपने लेकर आंखों से नींदे जाती हैं तभी एक आहट सी दिल में बेचैनी सी भर देती है. मोबाइल पर तुमसे बातें आशाओं को पर देती है मरूथल के तपते दामन पर बारिश की बूंदे आती हैं। सुबह सुबह आवाज़ तुम्हारी बेसुध को सुध कर जाती है अलसाई आवाज़ जादुई, जाने क्या क्या कर जाती है नई उमंगे अवचेतन पर चेतन का रस बरसाती हैं। एक अधूरापन सांसों का रहा अपरिमित भी कितना हो और नयन की बोझिलता में जीवन प्रश्न बड़ा कितना हो, किन्तु सवेरे तुमसे बातें जीवन में रस भर जाती हैं। प्रेम, सहजता की परिभाषा आवाज़ों से छन कर आता आधी ख़्वाहिश का पूरापन अपनेपन की प्यास बुझाता, मन में इठलाती सी लहरें सागर के तट को पाती हैं।