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Showing posts from November, 2013

मां सरयू के नाम एक पाती...

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जब भी घर जाऊंगा इक काम करके आऊंगा कुछ उसूलों को मैं सरयू में बहा आऊंगा। कहते हैं सरयू में श्रीराम ने त्यागा था शरीर मैं भी उकताए हुए स्वप्न को तज आऊंगा।

दिल..

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दर्द गुस्ताख हुआ जाता है... बात सुनता नहीं मेरी कोई. . नन्हें बच्चे की तरह ज़िद्दी है करवटें रात भर नहीं सोई

तुम ही तुम..

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वो एक शाम  समंदर के किनारे तुम्हारे करीब कुछ पलों में सिमट गई थी कहीं आज फिर दिल में तमन्ना उठी वो एक शाम  फिर आंखों में सज़ा रखी है बीते लम्हों को कुरेदा फिर से हाथ में आईं मेरे दो बातें एक अफसोस  जब बिछड़ा था समंदर से मैं एक तसल्ली  कि मेरे पास तुम हो

ज़ख्म

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बहुत दिनों से कोई ज़ख्म मेरे दिल के किसी कोने में रह-रह के रिसता है दर्द ने ली है पनाह आंसुओं के समंदर के किनारे सोचता हूं  मगर अब सोच नहीं पाता वक्त की किताब के सारे पन्ने उघड़े हैं बिखर रहे हैं हालातों की आंधी में एक मै था जो बिखर रहा है  धीरे-धीरे ये मेरा विस्तार है.... या खोता जा रहा हूं  खुद को मैं..

सांस

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आरजू लम्हों की बेरंग किताब जुस्तजू सांसों का उल्टा हिसाब ज़िंदगी इब्तिदा थी ख्वाबों की मौत थी असलियत का हिजाब

मोहब्बत के नाम एक पाती

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मोहब्बत वक्त के हाथों कभी नापा नहीं करते.. ये दिल की वादियों में ही पनपनी..ख़त्म होती है..

जो साथ छोड़कर भी साथ हैं...

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कभी तो आसमां से उतरो भी.. थाम लो फिर से मेरे हाथों को ज़िंदगी की तमाम मुश्किल में फिर बचा लो सुनहरे वादों को..

मैं....

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हंसी तो जिल्द है मेरे उदास चेहरे की.. ना होती ये तो लोग जाने क्या समझ लेते..

सच

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ज़िंदगी एक नज़्म है प्यारे, मायने जिसका कुछ नहीं होता.. धड़कनों का तो ठौर है दिल में..मौत का आशियां नहीं होता..