तुम होतीं तो ऐसा होता...





दीप पर्व पर तुम होतीं तो,


जगमग ये दीवाली होती,

मेरे आंगन में रहती तो,

हर मुस्कान निराली होती।





नियति का ये चक्र अनोखा,

मुझको हर धोखे पर धोखा,

तुमको खोया तब जाना है,

क्यूं आखों ने आंसू सोखा।



एक बार सपनों में आती,

हर दिन रात दिवाली होती।



हर आंसू से दिया जलाऊं,

हर पीड़ा से गीत रचाऊं,

मां मेरे जीवन के मग में,

तुम आओ मैं दीप जलाऊं।



जाने ही किस लोक गई तुम,

अब बेकार दिवाली होती।



दीप पर्व पर तुम होतीं तो,

जगमग ये दीवाली होती।

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