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Showing posts from July, 2015

निर्जला

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आज गर हो सके तो आ जाना तुम्हारी याद में  आंखे है निर्जला कब से आओ जब भी तो शाम को आना सांझ होगी तुम्हारे कांधों पर आंखों का निर्जला भी टूटेगा और कुछ बात भी सुनानी है दिल में जो अनकही कहानी है हो सके तो ज़रा सा वक्त साथ ले आना है इंतज़ार मेरी आंखों को उनको भी निर्जला व्रत तोड़ना है

सुन रही हो ना

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तुम्हारे पास  मैं अपना बहुत कुछ छोड़ आय़ा हूं चलो फिर से निकालें आज हम कुछ ऐसी यादों को जो बरसों से नहीं निकली ज़ेहन की बंद दराज़ों सेे  निकालें और दिखाएं धूप उनको और दें हौले से इक थपकी बहुत नम हैं वो यादें जिस तरह नम हो गई हैं मेरी आंखें समझ तो पा रही होगी मैं कहना चाहता हूं क्या.... सुनो बेफिक्र रहना... मैं यहां काफी मज़े में हूं... उदासी जब भी आती है उसे मैं ये बताता हूं कि मैं तन्हा नहीं हूं साथ में मेरे कुछ यादें हैं हां मैं तन्हा नहीं हूं... सुन रही हो ना....

प्रेयसी

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तुम प्रेयसी थी... प्रेयसी हो और प्रेयसी ही रहोगी मेरे जीवन में क्योंकि नहीं छोड़ी तुमने अपनी आदतें वो चिंहुक कर बतियाना खुद को सवांरना बात बात पर  खिलखिलाना तुम ही तो हो  जिससे चाहत है इतनी लेकिन एक सवाल है तुमसे तुमने चुना था मुझे या मैंने चुना था तुम्हें ये सच अब तक सतह पर नहीं आ सका... ना मैं जान सका क्या तुम बताओगी मुझे....?