सुन रही हो ना
तुम्हारे पास
मैं अपना बहुत कुछ छोड़ आय़ा हूं
चलो फिर से निकालें आज हम
कुछ ऐसी यादों को
जो बरसों से नहीं निकली
ज़ेहन की बंद दराज़ों सेे
निकालें और दिखाएं धूप उनको
और दें हौले से इक थपकी
बहुत नम हैं वो यादें
जिस तरह नम हो गई हैं
मेरी आंखें
समझ तो पा रही होगी
मैं कहना चाहता हूं क्या....
सुनो बेफिक्र रहना...
मैं यहां काफी मज़े में हूं...
उदासी जब भी आती है
उसे मैं ये बताता हूं
कि मैं तन्हा नहीं हूं
साथ में मेरे कुछ यादें हैं
हां मैं तन्हा नहीं हूं...
सुन रही हो ना....
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