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Showing posts from October, 2015

तुम्हारे सिवा कुछ भी सोचा नहीं...

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सफर के वास्ते ये ज़िंदगानी थी बहुत बोझिल ये तुम हो जिसने इसको प्यार से अक्सर संवारा है। कि बस तन्हाईंयों में ही कटे थे रात-दिन मेरे, तुम्हें देखा तो जाना तेरी आंखों ने पुकारा है। मैं अपने इश्क को लफ्ज़ों में शायद ढ़ाल ना पाउं ये सच है तू मेरे उन्वान का पहला सितारा है। मैं ना मजनू, ना रांझा,रोमियो,महिवाल की तरह मेरी कश्ती, मेरा सागर, तू ही मेरा किनारा है।

अनकहा प्रेम

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  उसने जब हुस्न को मक़ाम दिया हमने आंखों से उसके जाम पिया। आरजू करवटें बदलती रही हमने हाथों को उसके थाम लिया। अब तमन्ना मचलने लगती है इश्क में हमने क्या ना काम किया। अब तो शिकवा नहीं रहा कोई ज़िंदगी तेरा एहतराम किया । दास्तानें सभी मुकम्मल है देवता तुझको ये पयाम किया।