अनकहा प्रेम


 


उसने जब हुस्न को मक़ाम दिया

हमने आंखों से उसके जाम पिया।


आरजू करवटें बदलती रही

हमने हाथों को उसके थाम लिया।


अब तमन्ना मचलने लगती है

इश्क में हमने क्या ना काम किया।


अब तो शिकवा नहीं रहा कोई

ज़िंदगी तेरा एहतराम किया ।


दास्तानें सभी मुकम्मल है

देवता तुझको ये पयाम किया।

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