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Showing posts from 2015

तुम्हारे सिवा कुछ भी सोचा नहीं...

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सफर के वास्ते ये ज़िंदगानी थी बहुत बोझिल ये तुम हो जिसने इसको प्यार से अक्सर संवारा है। कि बस तन्हाईंयों में ही कटे थे रात-दिन मेरे, तुम्हें देखा तो जाना तेरी आंखों ने पुकारा है। मैं अपने इश्क को लफ्ज़ों में शायद ढ़ाल ना पाउं ये सच है तू मेरे उन्वान का पहला सितारा है। मैं ना मजनू, ना रांझा,रोमियो,महिवाल की तरह मेरी कश्ती, मेरा सागर, तू ही मेरा किनारा है।

अनकहा प्रेम

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  उसने जब हुस्न को मक़ाम दिया हमने आंखों से उसके जाम पिया। आरजू करवटें बदलती रही हमने हाथों को उसके थाम लिया। अब तमन्ना मचलने लगती है इश्क में हमने क्या ना काम किया। अब तो शिकवा नहीं रहा कोई ज़िंदगी तेरा एहतराम किया । दास्तानें सभी मुकम्मल है देवता तुझको ये पयाम किया।

निर्जला

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आज गर हो सके तो आ जाना तुम्हारी याद में  आंखे है निर्जला कब से आओ जब भी तो शाम को आना सांझ होगी तुम्हारे कांधों पर आंखों का निर्जला भी टूटेगा और कुछ बात भी सुनानी है दिल में जो अनकही कहानी है हो सके तो ज़रा सा वक्त साथ ले आना है इंतज़ार मेरी आंखों को उनको भी निर्जला व्रत तोड़ना है

सुन रही हो ना

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तुम्हारे पास  मैं अपना बहुत कुछ छोड़ आय़ा हूं चलो फिर से निकालें आज हम कुछ ऐसी यादों को जो बरसों से नहीं निकली ज़ेहन की बंद दराज़ों सेे  निकालें और दिखाएं धूप उनको और दें हौले से इक थपकी बहुत नम हैं वो यादें जिस तरह नम हो गई हैं मेरी आंखें समझ तो पा रही होगी मैं कहना चाहता हूं क्या.... सुनो बेफिक्र रहना... मैं यहां काफी मज़े में हूं... उदासी जब भी आती है उसे मैं ये बताता हूं कि मैं तन्हा नहीं हूं साथ में मेरे कुछ यादें हैं हां मैं तन्हा नहीं हूं... सुन रही हो ना....

प्रेयसी

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तुम प्रेयसी थी... प्रेयसी हो और प्रेयसी ही रहोगी मेरे जीवन में क्योंकि नहीं छोड़ी तुमने अपनी आदतें वो चिंहुक कर बतियाना खुद को सवांरना बात बात पर  खिलखिलाना तुम ही तो हो  जिससे चाहत है इतनी लेकिन एक सवाल है तुमसे तुमने चुना था मुझे या मैंने चुना था तुम्हें ये सच अब तक सतह पर नहीं आ सका... ना मैं जान सका क्या तुम बताओगी मुझे....?
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उम्र जब अधपकी सी अमिया थी थोड़ी खट्टी सी थोड़ी मिट्ठी सी.. बस उसी वक्त मैंने फागुन में हाथ में ले के गुलाबी गुलाल तुम्हारे चेहरे पे हौले मल दिया था यूं कहके यूं 'धत्त' मुस्कराईं थीं मुझको जन्नत यूं नज़र आई थी हो गए होंगे कुछ पचीस बरस अब तो यादों से भी मिटा हूं मैं तब से फागुन उदास रहता है गुलाबी अब गुलाल होता नहीं ना ही वो 'धत्त' सुना फिर मैनें तुम इस जहां में हो..या दूर कहीं ? क्या तुम्हें अब भी वही आदत है 'धत्त' कहने की...भाग जाने की....

दोस्ती के नाम...इक पैग़ाम..उस दोस्त के लिए जिसके साथ चलते हुए आज 28 जनवरी को तीन साल हो गए

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आज से तीन बरस पहले तक तन्हा-तन्हा था अपनी दुनिया में तुमने चुपके से मेरे हाथों पे अपने होने की लकीरें खींची तब से हर सिम्त धनक दिखता है बिखरे हैं रंग हज़ारों हमारी दुनिया में.. जब से तुम आई हो मैं ख़्वाब बुनना सीख गया सीखा मैंने भी हुनर लफ्ज़ का जो सीख सका सीखीं तस्वीरें बनानी मैंने दरमियां टेढ़े-मेढ़े रिश्तों के मेरा उन्वान हो और मेरा तखल्लुस तुम हो तुमसे ही मैं हूं... तुम्हारे सिवा मैं कुछ भी नहीं...