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पांच पैसे की ज़िंदगी

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पांच पैसे में ज़िंदगी की खुशी किसी ने देखी हो बताए मुझे जब भी बचपन में नन्हें हाथों में पांच पैसे का सिक्का आता था जाने क्या ख्वाब बुना करते थे दिल की आवाज़ सुना करते थे आज हाथों में नोट हैं लेकिन वो खुशी अब नही मिलती फिर भी पांच पैसे से जुदाई का सबब किश्तों अब चुका रहा हूं मैं ज़िंदगी अब रेहन है बैंको में आरज़ू पर भी ब्याज़ लगता है पांच पैसे का वक्त अच्छा था किश्त की ज़िंदगी से बेहतर था चाहता हूं कि वक्त फिर बदले उम्र घट जाए..बच्चा हो जाऊं फिर से हाथों में आए वो सिक्का फिर उसी ज़िंदगी में लौट जाऊं