अंखियन देखी बात कहूं मैं
अंखियन देखी बात कहूं मैं,
दुख में सुख का भार सहूं मैं,
मेरी परिणित सिर्फ यही है,
दो पाटन के बीच रहूूं मैं।
आंसू की ज्वाला उकसाती,
भेद सभी चेहरे पर लाती,
ये मेरे अंतर की पीड़ा,
विष दंतों सी मुझे सताती।
इसकी नियति तोड़ चला हूं,
पीड़ा में मुस्कान बहूं मैं।
अंखियन देखी बात कहूं मैं,
दुख में सुख का भार सहूं मैं।
दीपक बिन आंगन है सूना,
जैसे आंसू का ख़त छूना,
शेष रह गई मेरी पीड़ा,
हृदय का आवास नमूना।
प्रिय तेरे आहट में खोकर,
अंदर-अंदर रोज़ ढ़हूं मैं।
अंखियन देखी बात कहूं मैं,
दुख में सुख का भार सहूं मैं।
मैं रो कर भी रो ना पाया,
खुद को खो कर खो ना पाया,
ये मेला भी अजब तमाशा,
मैं गा कर भी गा ना पाया।
बस तेरी सांसों के सुर में,
सारे अपने गीत कहूं मैं।
अंखियन देखी बात कहूं मैं,
दुख में सुख का भार सहूं मैं।
तेरी मेरी सांसे थोड़ी,
दुनिया समझे नहीं निगोड़ी,
खर्च यहीं सब हो जानी हैं,
सांसे भी कब किसने जोड़ी।
फिर भी तृष्णा बहुत बड़ी है,
मृग तृष्णा के बीच बहूं मैं।
Comments
Post a Comment