तुम्हारे नाम की स्याही




मैंने माज़ी के बासी टुकड़े तले

वहीं किनारे उसी मेज के पास

एक अल्फाज़ दबा रखा था

सोचा देखूं तुम्हारी यादों को

वक्त के साथ कुछ हुआ तो नहीं

मैंने देखा वो सुनहरा अल्फाज़

आज मुरझाया सा लगा था मुझे

उसे उठा के हथेली पे रखा

बहुत निहारा, आंख भर आई

तुम्हारे नाम की स्याही 

अभी भी गीली है....

Comments

Popular posts from this blog

मोहब्बत सिर्फ नशा नहीं...तिलिस्म है...

शै