जीवन
टुकड़ों में नीलाम हो गया मेरा जीवन,
अपना था गुमनाम हो गया मेरा जीवन।
इसकी निधियां संचित कर पलकों पर रखीं,
स्मृति को बेकाम कर गया मेरा जीवन।
मुझको जब भी मिला दे गया ताप अनूठा,
माघ-पूस का घाम हो गया मेरा जीवन।
ना जानें क्यों रह रह कर समझाता जाता,
मास्साब की डांट हो गया मेरा जीवन।
जब भी रजत रश्मियों से मिलकर के आता,
बिन देवों का धाम हो गया मेरा जीवन।
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