वक़्त
सुबह सुबह
चुपके से थोड़ी सी धूप
मल देती है मेरे चेहरे
वक्त का गुलाल
आइना देखता हूं
तो उम्र याद नहीं रहती
कितने बरस बीते..
कितने सावन
चंद नए रिश्तों और
पुराने रिश्तों का हिसाब
सुलझता ही नहीं
उम्र थोड़ी है या बहुत कुछ भी
ये जो रिश्ते हैं
परेशान किया करते हैं
कभी कभी तो ये उम्मीद भी
दम तोड़ देती है
क्या ऐसा हो सका है
जो गया हो
फिर मिला हो
ना रिश्ते...ना उम्र..ना ही वो धूप
जो मल देती थी
मेरे चेहरे पर
वक्त का गुलाल..
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