सिलवटें


या खुदा किरदार पर इंसान के हैं सिलवटें,

सब ज़ुबानी कह रही हैं बेज़ुबां सी सिलवटें।


इल्म की गठरी को ढोना जुर्म हो जाता है तब,

देख ही पाएं अगर बस रोटियों की सिलवटें।


हो चुकी कब की सयानी आशियां में बेटियां,

ये बताती बाप के माथे पर आई सिलवटें।


बंद कमरों से सुनहरी धूप की जानिब चलो,

और मिटाओ ख़्याल के पर्दों की सारी सिलवटें।


जुर्म भी तारीफ के काबिल अगर हो जाए तो,

देखिए इंसानियत की आबरू पर सिलवटें।


वो जो अपनी लाश पर खुद फातिहा पढ़ता रहा,

'मधुर' होगा, साथ में माथे पे लेके सिलवटें।

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