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मोहब्बत सिर्फ नशा नहीं...तिलिस्म है...
क्यों हर जाना, अनजाना सा मुझको लगता है, मेरे पहलू में है कोई मुझको लगता है। क्यों आरिज़ कभी कभी ही आते रंग हज़ार, आंखों की हैं बातें ये सब मुझको लगता है। क्या जानेंगे लोेग मोहब्बत की दुनिया की बात, उनको कोई ख़बर नहीं है मुझको लगता है। 'मधुर' तुम्हारी हंसी ना जाने क्या कहती हर बार, है महफूज़ वाइज़ों ये मुझको लगता है।
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