दर्द जब हद गुज़र जाए तो क्या होता है...
दर्द से गुफ्तगूं करने बैठा,
मैं ज़हर आग का पीने बैठा।
मैं था तन्हाईयों का दामन था,
अश्क आखों में छिपा था बैठा।
फिर उसी दौर के किस्से उट्ठे,
मैं था गलियों में इश्क के बैठा।
आज बादल जो फूटकर रोए,
दर्द की खाक़ पर पहरा बैठा।
आंसुओं अपनी हिफाज़त कर लो,
मैं हूं माज़ी के गांव में बैठा।
आज की रात रतजगा होगा,
एक जुगनू हथेली पर बैठा।
कई बार पढ़ा, और दर्द की नदी में साँसों का बुलबुला उठता रहा
ReplyDeleteधन्यवाद मैम, फेसुबक पर तो आपसे कई बार मुलाकात हो जाती है लेकिन ब्लॉग पर नहीं लेकिन आपके कमेंट मेरे ब्लॉग पर मेरे लिए आशीष से कम नहीं।
Deleteसादर प्रणाम