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मोहब्बत सिर्फ नशा नहीं...तिलिस्म है...

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क्यों हर जाना, अनजाना सा मुझको लगता है, मेरे पहलू में है कोई मुझको लगता है। क्यों आरिज़ कभी कभी ही आते रंग हज़ार, आंखों की हैं बातें ये सब मुझको लगता है। क्या जानेंगे लोेग मोहब्बत की दुनिया की बात, उनको कोई ख़बर नहीं है मुझको लगता है। 'मधुर' तुम्हारी हंसी ना जाने क्या कहती हर बार, है महफूज़ वाइज़ों ये मुझको लगता है।

दर्द जब हद गुज़र जाए तो क्या होता है...

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दर्द से गुफ्तगूं करने बैठा, मैं ज़हर आग का पीने बैठा। मैं था तन्हाईयों का दामन था, अश्क आखों में छिपा था बैठा। फिर उसी दौर के किस्से उट्ठे, मैं था गलियों में इश्क के बैठा। आज बादल जो फूटकर रोए, दर्द की खाक़ पर पहरा बैठा। आंसुओं अपनी हिफाज़त कर लो, मैं हूं माज़ी के गांव में बैठा। आज की रात रतजगा होगा, एक जुगनू हथेली पर बैठा।

तुम्हारी याद ज़ेहन से जाती ही नहीं

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दर्द भी अब उदास रहता है, थोड़ा सा बदहवास रहता है। तुमसे बिछड़े तो आज ये जाना, आहटों का कयास रहता है।

वो एक शब्द

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वो एक शब्द  जो मेरे-तुम्हारे बीच बहुत तन्हा है आज उस शब्द को आकाश की चादर दे दो दे दो गहराई एक शांत समंदर जैसी दे दो देना हो तो इस रिश्ते को अब नाम कोई बहुत चुभता है कहीं दिल के किसी कोने में वो शब्द जो मेरे-तुम्हारे बीच बहुत तन्हा है