दर्द
दर्द से गुफ्तगूं करने बैठा, मैं ज़हर आग का पीने बैठा। आज बादल भी फूटकर रोए, दर्द की ख़ाक पे पहरा बैठा। आसुओं अपनी हिफाज़त कर लो, मैं हूं माज़ी के गांव में बैठा। आज की रात रतजगा होगा, एक जुगनू हथेली पर बैठा।
एक सफ़र जो ख़त्म नहीं होता