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Showing posts from June, 2017

दर्द जब हद गुज़र जाए तो क्या होता है...

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दर्द से गुफ्तगूं करने बैठा, मैं ज़हर आग का पीने बैठा। मैं था तन्हाईयों का दामन था, अश्क आखों में छिपा था बैठा। फिर उसी दौर के किस्से उट्ठे, मैं था गलियों में इश्क के बैठा। आज बादल जो फूटकर रोए, दर्द की खाक़ पर पहरा बैठा। आंसुओं अपनी हिफाज़त कर लो, मैं हूं माज़ी के गांव में बैठा। आज की रात रतजगा होगा, एक जुगनू हथेली पर बैठा।

तुम्हारी याद ज़ेहन से जाती ही नहीं

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दर्द भी अब उदास रहता है, थोड़ा सा बदहवास रहता है। तुमसे बिछड़े तो आज ये जाना, आहटों का कयास रहता है।