असमंजस

आंसुओं से कुछ चुराकर, ज़ख्म से नज़रें बचाकर, जेब में खुशियां लिए हूं दर्द को समझा बुझा कर। धूप लो आंगन में आई, लो परिन्दे चहचहाए, सोचता अच्छा हूं मैं भी, अपने माज़ी को भुला कर। देख कर दुनिया को सारी अनदिखा रह जाएगा जो, मैं वो अफ़साना कहूंगा, अपनी नज़रो से बचा कर। आखिरी लम्हों में सारे दोस्त दामन छोड़ देंगे मधुर तेरी ज़िंदगी भी, जाएगी नज़रें झुका कर।