नामर्द

एक औरत ने ही जना तुमको चाहती गर ना तुम्हें तुम ना खोल पाते आंखें एक औरत ने ही जना तुमको उसको ये क्या पता था मर्द के नाम पे नामर्द जना तुम्हारी आंखों में ठहरी है हवस की आंंधी तुमने नोचा था अपने हाथों एक मासूम सी लड़की का बदन और फिर तेज़ धार चाकू से वार-पर-वार किए जाते रहे लहू गवाही दे रहा है सब, सोचो तो सिर्फ इस तरफ सोचो आज से 20-30 साल पहले एक मासूम सी लड़की की जगह तुम्हारी मां होती..... टूट जाती तुम्हारी भी हिम्मत तुम भी बच जाते इन गुनाहों से पर अफसोस तुम इंसान तो निकले ही नहीं एक नामर्द हो...नामर्द ही मरोगे तुम