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मोहब्बत सिर्फ नशा नहीं...तिलिस्म है...
क्यों हर जाना, अनजाना सा मुझको लगता है, मेरे पहलू में है कोई मुझको लगता है। क्यों आरिज़ कभी कभी ही आते रंग हज़ार, आंखों की हैं बातें ये सब मुझको लगता है। क्या जानेंगे लोेग मोहब्बत की दुनिया की बात, उनको कोई ख़बर नहीं है मुझको लगता है। 'मधुर' तुम्हारी हंसी ना जाने क्या कहती हर बार, है महफूज़ वाइज़ों ये मुझको लगता है।
मुकाबला
हमने भी कश्तियों को तूफां में उतारा है, ऐ मौज समंदर का सीना भी हमारी है। क्या ख़ाक लुत्फ लेंगे साहिल के तमाशाई, जिसने हर इक लम्हा, डर डर के गुज़ारा है। देखेंगे आज हम भी तेवर तलातुम के, कह देंगे बाज़ुओं में ये ज़ोर हमारा है। अब क्या कहेंगे बातें, तुमसे 'मधुर' बताएं, जब दर्द बढ़ चला है, टूटा ये किनारा है।
अच्छा है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/