मोहब्बत से आगे..कुछ औऱ..
मोहब्बत बात करती है मेरी तन्हाईयों में, हमारे साथ रहती हैं कि हर रुसवाइयों में। बहुत से ख्वाब उनींदें बहुत अलसाई सी रातें, बहुत से रतजगे थे और अधूरी सी रही बातें, थे कुछ यूं अनकहे पैगाम उन अंगड़ाइयों में। बहुत बिगड़ा रहा मौसम बहुत सी आंधियां आई, बहुत से रास्ते भटके कि जब भी हिचकियां आई, अभी भी हसरतें शामिल उन्हीं परछाइयों में। बहुत थी बेकरारी भी बहुत से दिल में अफसाने, बहुत थी बेखुदी भी छलके थे आंखों के पैमाने, हज़ारों जुगनुओं ने भी छला बर्बादियों में।