मेरी मां के लिए


जब भी थक कर के,मैं दफ़्तर से घर को लौटा हूं,

और यूं सोया हूं कि मुझको कुछ पता ही नहीं

फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां,

मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।


जब भी ऐसा लगा मेरे हाथ में अब कुछ भी नहीं

याद आता है वो दस पैसे का सिक्का मुझको,

जिससे लेता था मैं चूरन की वो मीठी गोली

पेट भर जाता है महसूस हुआ है मुझको ।


फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां,

मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।


हर तरफ भीड़ है, आवाज़ है और दुकानें

सारी दुनिया है और फिर मैं इतना तन्हा,

मैंने बेबस सी निगाहों से आसमां को तका

तेरा आंचल है नम महसूस हुआ है मुझको ।


फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां,

मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।


जब भी आंखों में तेरी शक्ल सी उभरी हो मेरे

मेरा गुस्सा कहीं काफूर सा हो जाता है

हर एक शख़्स के किरदार में मिलती हो मुझे

तुम हवाओं में भी महसूस हुआ है मुझको ।


फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां,

मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।





Comments

  1. हर एक शख़्स के किरदार में मिलती हो मुझे

    तुम हवाओं में भी महसूस हुआ है मुझको ।
    Bahut khoob..aankhen nam ho gayeen..

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  2. जब भी थक कर के,मैं दफ़्तर से घर को लौटा हूं,

    और यूं सोया हूं कि मुझको कुछ पता ही नहीं

    फिर भी एहसास वो हाथों की छुअन तेरे मां,

    मैंने सिरहाने पर महसूस किया है तुझको ।
    Kya baat hai..maa hastee heee aisee banee hai!

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  4. बहुत खूब .अच्छी भावाव्यक्ति--मां की क्रपा ही है.

    ---कला-तकनीक पर भी ध्यान दें ।

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  5. आप सभी का धन्यवाद, आपने मेरी हौसला आफज़ाई की, अभी तक तो अपने घर में घुटनों के बल चलता था.अब बाहर निकला हूं, कोई कमी हो तो कृपया ज़रूर बताएं, मैंने अब तक भावनाएं समझीं हैं, विधाएं नहीं..मेरा मानना है..कि भावनाओं की कोई विधा नहीं होती..भावनाएं तो बस भावनाएं ही हैं,

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