तुम्हारी कल्पना में



इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम,


आंख के सागर में ना हो जाऊं मैं गुम ।




कल्पना है या मेरी छोटी सी आशा,


हृदय पत्रों पर उभरती प्रेम भाषा,


प्रेयसि इस बार कुछ खुल करके बोलो,


प्रेम कोंपल को ना घेरे अब निराशा।




हृदय के तारों के मेरे सुर सभी तुम,


इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम।




नेह को स्पर्श की होती है चाहत ,


हृदय स्पंदन भी लगती तेरी आहट,


रुठ कर कब से गई है मेरी निद्रा,


सोचता हूं स्वप्न ना हो जाएं आहत।




सोचता तुमको मै जब हो जाता गुमसुम,


इस तरह मुड़कर ना देखो प्रिय मुझे तुम।








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