तुम ही तुम..





वो एक शाम 


समंदर के किनारे

तुम्हारे करीब

कुछ पलों में सिमट गई थी कहीं

आज फिर दिल में तमन्ना उठी

वो एक शाम 

फिर आंखों में सज़ा रखी है

बीते लम्हों को कुरेदा फिर से

हाथ में आईं मेरे दो बातें

एक अफसोस 

जब बिछड़ा था समंदर से मैं

एक तसल्ली 

कि मेरे पास तुम हो

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