मौन ही खुद बोलता है
उसने जीवन की डोर बुनी,
मन ही मन में इक बात चुनी,
जब देश की जर्जर हालत पर,
भारत मां की आवाज़ सुनी।
था युवा बहुत, थे स्वप्न बड़े,
रस्ते पथरीले और कड़े,
थी राह कठिन, असमंजस भी,
कुछ बंधन थे सामने खड़े।
लेकिन संकल्प वो अविजित था,
फिर भी नौका मझधार चुनी।
परिवार अडिग था ज़िद पर यूं,
वो नहीं समझ पाया कि क्यूं,
वो चला अकेला था पथ पर,
जीवन साथी का साथ ही क्यूं।
फिर हार के उसने हां कर दी,
उसकी हर आशा गई भुनी।
वह विवश मातृ के आगे था,
उलझा-उलझा बस तागे सा,
वो मान गया फिर परिणय पर,
जब कि विवाह से भागे था।
पर राष्ट्र प्रेम सर्वोपरि था,
जीवन साथी ने बात सुनी।
जीवन साथी था एक ओर,
था राष्ट्र प्रेम की थामे डोर,
जीवन संगिनी ने मुक्त किया,
था कष्ट बहुत पीड़ा भी घोर।
था निकल पड़ा वो मतवाला,
वो राष्ट्र धर्म का एक मुनि।
जीवन संगिनी ने जाना था,
बाधक नहीं होगी ठाना था,
वो नहीं मिले फिर बरसों से,
यूं लक्ष्य सुराज का पाना था।
दोनों के मग थे हुए अलग,
लेकिन दुनिया थी एक चुनी।
ऐसा ही एक दिवस आया,
जब उसने सबको बतलाया,
वो मेरी जीवन साथी है,
उसने जो खोया था पाया।
वो भारत मां की थाती थी,
जो राष्ट्र धर्म की राह चुनी।
यौवन तो बीत गया था जब,
पर अन्तर्मन संतुष्ट था अब,
इस देश का हर बच्चा-बच्चा,
लगता था उसके लाल हैं सब।
अपने परिवार को तज करके,
Ati Sundar Marmik avm Preranaadayak
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