दोस्ती के नाम...इक पैग़ाम..उस दोस्त के लिए जिसके साथ चलते हुए आज 28 जनवरी को तीन साल हो गए
तन्हा-तन्हा था अपनी दुनिया में
तुमने चुपके से मेरे हाथों पे
अपने होने की लकीरें खींची
तब से हर सिम्त धनक दिखता है
बिखरे हैं रंग हज़ारों हमारी दुनिया में..
जब से तुम आई हो
मैं ख़्वाब बुनना सीख गया
सीखा मैंने भी हुनर लफ्ज़ का
जो सीख सका
सीखीं तस्वीरें बनानी मैंने
दरमियां टेढ़े-मेढ़े रिश्तों के
मेरा उन्वान हो और मेरा तखल्लुस तुम हो
तुमसे ही मैं हूं...
तुम्हारे सिवा मैं कुछ भी नहीं...
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